चतुर्मास हिंदू धर्म में चार महीनों की एक विशेष अवधि है, जिसे भगवान विष्णु की पूजा और आध्यात्मिक साधना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। यह आषाढ़ शुक्ल एकादशी (हरिशयनी एकादशी) से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) तक चलता है। इस दौरान भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और माना जाता है कि वे चार महीने बाद जागते हैं।
चतुर्मास के दौरान कई धार्मिक नियमों और व्रतों का पालन किया जाता है। साधुओं और गृहस्थों के लिए इसे संयम, त्याग और ध्यान का समय माना जाता है। आमतौर पर लोग इस दौरान मांस, मछली, प्याज, लहसुन और अन्य तामसिक चीजों का सेवन छोड़ देते हैं। इसके अलावा, कई लोग चातुर्मास के दौरान विशेष नियमों का पालन करते हैं, जैसे दिन में एक बार भोजन करना, अनाज का त्याग करना या विशेष व्रत रखना।
संक्षेप में, चतुर्मास संयम, साधना और भक्ति के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति का समय है।
चतुर्मास के देवता !
चतुर्मास के देवता भगवान विष्णु माने जाते हैं। इस समय को विशेष रूप से भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने का समय माना जाता है। हरिशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, और कार्तिक शुक्ल एकादशी (जिसे प्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है) को वे पुनः जागृत होते हैं।
चतुर्मास के प्रत्येक महीने में विभिन्न देवताओं की पूजा और व्रत होते हैं, जो इस प्रकार हैं:
पहला महीना (श्रावण) - भगवान शिव की आराधना होती है, और श्रावण मास को शिव की पूजा के लिए सबसे पवित्र माना गया है। श्रावण सोमवार का विशेष महत्व है।
दूसरा महीना (भाद्रपद) - भगवान कृष्ण की पूजा होती है, और कृष्ण जन्माष्टमी इस महीने में मनाई जाती है।
तीसरा महीना (आश्विन) - देवी दुर्गा की पूजा होती है, खासकर शारदीय नवरात्रि के दौरान।
चौथा महीना (कार्तिक) - इस महीने में भगवान विष्णु की विशेष पूजा होती है, और इसे तुलसी विवाह तथा दीपावली का समय भी माना जाता है। इस दौरान देवउठनी एकादशी से भगवान विष्णु की पुनः जागृति होती है।
चतुर्मास में मुख्य रूप से भगवान विष्णु और उनके विभिन्न रूपों की पूजा होती है, परंतु अन्य देवताओं का भी महत्व और पूजन होता है।
चतुर्मास की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
धार्मिक अनुष्ठान और साधना का समय: चतुर्मास को आध्यात्मिक उन्नति और साधना के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इस दौरान भक्तगण विभिन्न प्रकार के व्रत, उपवास और पूजा-अर्चना करते हैं।
भक्ति और संयम का महत्व: चतुर्मास में संयमित जीवन जीने पर जोर दिया जाता है। लोग मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन और अन्य तामसिक पदार्थों का त्याग करते हैं। कई लोग अपने आहार में सादा और सात्त्विक भोजन शामिल करते हैं।
प्राकृतिक और शारीरिक शुद्धिकरण: इस समय में व्रत रखने से शरीर का शुद्धिकरण होता है। वर्षा ऋतु में जलवायु और खानपान का प्रभाव शरीर पर अधिक होता है, जिससे कुछ समय के लिए विशेष आहार का सेवन करना शरीर के लिए लाभकारी माना जाता है।
धार्मिक उत्सवों का समय: चतुर्मास के चार महीनों में कई प्रमुख हिन्दू त्योहार आते हैं, जैसे कि गुरु पूर्णिमा, जन्माष्टमी, रक्षाबंधन, गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली, और देवउठनी एकादशी। इन त्योहारों के माध्यम से भगवान के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है।
संन्यासियों के लिए विशेष समय: हिन्दू परंपरा में साधु-संतों के लिए चतुर्मास का समय विशेष महत्व रखता है। इस दौरान साधु और संन्यासी किसी एक स्थान पर निवास करते हैं और धार्मिक प्रवचन, साधना और साधारण लोगों को धर्म का मार्ग दिखाने का कार्य करते हैं।
पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक: चतुर्मास में वृक्षों की पूजा, जल संरक्षण और पर्यावरण के प्रति जागरूकता की परंपरा रही है। इस समय में पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है।
आध्यात्मिक जागरण का समय: चतुर्मास को आत्मशुद्धि, संयम और ध्यान के माध्यम से आंतरिक विकास का अवसर माना जाता है। इस दौरान व्यक्ति आत्मा की शांति और संतुलन प्राप्त करने का प्रयास करता है।
इस प्रकार, चतुर्मास का उद्देश्य न केवल आध्यात्मिक बल्कि भौतिक और मानसिक शुद्धि भी है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त कर सके।
चतुर्मास प्रसंग;
चतुर्मास का प्रसंग पौराणिक और धार्मिक कथाओं में विशेष महत्व रखता है। इसके पीछे एक रोचक कथा है, जो बताती है कि यह समय भगवान विष्णु के योग निद्रा में चले जाने और फिर जागने का समय माना जाता है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी (जिसे हरिशयनी एकादशी कहते हैं) के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर योग निद्रा में चले जाते हैं। इस योग निद्रा की अवधि चार महीने की होती है और इन महीनों में सृष्टि की रक्षा का कार्य देवताओं, ऋषियों और भक्तों द्वारा किया जाता है।
इन चार महीनों के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी (जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी कहते हैं) को भगवान विष्णु जागते हैं। इस दिन भगवान विष्णु का स्वागत और पूजन किया जाता है और उनके जागने के उपलक्ष्य में कई स्थानों पर उत्सव, भजन, कीर्तन और जागरण का आयोजन किया जाता है। इस दिन को तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है, जो पवित्रता और पारिवारिक सुख-शांति का प्रतीक है।
प्रसंग एवं महत्व
भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने का समय वर्षा ऋतु में आता है। यह खेती-किसानी का समय भी होता है, इसलिए लोग अपने खेतों में काम करने और फसलों की देखभाल में अधिक व्यस्त रहते हैं। साथ ही, इस दौरान बारिश के कारण वातावरण में नमी और कीटों का प्रभाव बढ़ जाता है, इसलिए धार्मिक परंपराओं के अनुसार ऋषि-मुनियों और गृहस्थों को संयमित जीवन जीने की प्रेरणा दी गई।
धार्मिक दृष्टि से यह संयम, तप और भक्ति का समय है। ऋषि-मुनि एक स्थान पर रहकर साधना करते हैं और लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
चतुर्मास का यह प्रसंग सिखाता है कि जीवन में कुछ समय अपने आध्यात्मिक विकास, संयम और भक्ति के लिए भी समर्पित करना चाहिए।