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बुधवार, 4 दिसंबर 2024

भारत ने बांगलादेश को पाकिस्तान और चीन के हवाले कैसे कर दिया: भारत-बांगलादेश संबंधों में तनाव

भारत और बांगलादेश के रिश्ते, जो ऐतिहासिक रूप से मजबूत और सहयोगपूर्ण रहे हैं, अब गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। एक समय था जब बांगलादेश की स्वतंत्रता के संघर्ष में भारत का योगदान था, और दोनों देशों के बीच साझा इतिहास ने उन्हें एक दूसरे के प्रति मजबूत रिश्तों की दिशा में प्रेरित किया था। लेकिन आज, कुछ कारणों से बांगलादेश के विदेश नीति में बदलाव आया है, और कई लोग सवाल उठा रहे हैं: भारत ने बांगलादेश को पाकिस्तान और चीन के हवाले कैसे कर दिया?

ऐतिहासिक संदर्भ: बांगलादेश की स्वतंत्रता में भारत का योगदान

बांगलादेश की स्वतंत्रता के संघर्ष में भारत का योगदान अतुलनीय था। 1971 में बांगलादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ बांगलादेश की मदद की और उसकी स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया। इस युद्ध ने दोनों देशों के रिश्तों को एक मजबूत नींव दी थी। इसके बाद, बांगलादेश में भारतीय सहायता और संबंधों की गहरी अहमियत रही।

लेकिन बीते कुछ दशकों में इन रिश्तों में उतार-चढ़ाव आया है, और हाल के घटनाक्रमों में यह देखा गया है कि बांगलादेश अब पाकिस्तान और चीन के साथ अपने रिश्तों को मजबूत कर रहा है।

पाकिस्तान का बढ़ता प्रभाव

हालांकि पाकिस्तान और बांगलादेश के बीच 1971 की घटना को लेकर गहरी असहमति रही है, फिर भी पाकिस्तान ने हाल के वर्षों में बांगलादेश के साथ अपने संबंधों को सुधारा है। पाकिस्तान, खासतौर पर बांगलादेश की इस्लामिक समुदाय के साथ अपने सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों का उपयोग कर रहा है, जो उसे बांगलादेश में एक रणनीतिक साझीदार के रूप में स्थापित करने में मदद कर रहा है।

भारत और बांगलादेश के बीच पानी के बंटवारे (विशेष रूप से तीस्ता नदी) और सीमा सुरक्षा के मुद्दे पर विवाद होने के कारण पाकिस्तान को इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर मिला है।

चीन का बढ़ता प्रभाव

लेकिन सबसे बड़ा बदलाव चीन के प्रभाव का है। चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत बांगलादेश में बड़े पैमाने पर निवेश किया है, खासतौर पर बुनियादी ढांचे, बंदरगाहों और सड़क निर्माण में। चीन का निवेश बांगलादेश के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक मदद बन गया है, खासकर जब भारत उन निवेशों से बांगलादेश को उतना समर्थन नहीं दे पा रहा है।

इसके अलावा, बांगलादेश ने चीन के साथ अपने व्यापारिक और रणनीतिक रिश्तों को आगे बढ़ाया है, जिससे चीन ने बांगलादेश में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया है। अब बांगलादेश को चीन से आर्थिक मदद और व्यापारिक अवसर मिल रहे हैं, जिससे वह भारत से अपेक्षाकृत कम निर्भर हो गया है।

तनाव के प्रमुख क्षेत्र

1. सीमा विवाद और जल विवाद
भारत-बांगलादेश के रिश्तों में सबसे बड़ा मुद्दा सीमा सुरक्षा और जल विवाद है। विशेष रूप से तीस्ता नदी का जल बंटवारा लंबे समय से दोनों देशों के बीच विवाद का कारण बना हुआ है। इसके अलावा, बांगलादेश में अवैध अप्रवासन और शरणार्थियों के मुद्दे पर भी भारत और बांगलादेश के बीच तनाव रहा है।

2. क्षेत्रीय भू-राजनीतिक बदलाव
भारत ने अपनी रणनीति में चीन को काउंटर करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन बांगलादेश इस क्षेत्रीय संघर्ष में खुद को बीच में महसूस करता है। बांगलादेश चीन के साथ आर्थिक रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, ताकि वह भारत से अधिक स्वायत्तता प्राप्त कर सके।

3. आर्थिक प्रतिस्पर्धा
चीन ने बांगलादेश के बुनियादी ढांचे में बड़े निवेश किए हैं, जो भारत से आने वाले निवेशों से कहीं अधिक हैं। चीन की वित्तीय मदद ने बांगलादेश को सस्ती दरों पर ऋण प्रदान किए हैं, जिनमें भारतीय ऋणों की तुलना में अधिक लचीलापन है। इस आर्थिक प्रतिस्पर्धा ने बांगलादेश को चीन के करीब ला दिया है।

निष्कर्ष: भारत-बांगलादेश संबंधों का नया युग

भारत और बांगलादेश के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध अभी भी मजबूत हैं, लेकिन बांगलादेश की रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताएँ बदल गई हैं। पाकिस्तान और चीन ने बांगलादेश में अपनी पैठ मजबूत की है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां भारत पहले अपनी स्थिति खो चुका है।

हालांकि यह रिश्ते टूटने के कगार पर नहीं हैं, फिर भी भारत को अपनी आर्थिक सहयोग, राजनयिक संबंधों, और रणनीतिक संतुलन पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है, ताकि वह बांगलादेश को अपने प्रभाव में बनाए रख सके।

दक्षिण एशिया में भू-राजनीति की बदलती परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, भारत को बांगलादेश के साथ अपने संबंधों को पुनः मजबूत करने के लिए रणनीतिक पहल करनी होगी।

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